समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) एक ऐसी कानूनी प्रणाली है जो एक देश में सभी नागरिकों को समानता और न्याय के माध्यम से वैवाहिक, पारिवारिक और विधि सम्बंधित मामलों को व्यवस्थित करने का प्रयास करती है। यह कानूनी प्रणाली एक ही संहिता के तहत सभी धर्मों के लोगों के लिए लागू होती है, जिससे सभी नागरिकों को विशेष अधिकारों और कर्तव्यों का एक सामान्य मानचित्र बनाने का लक्ष्य होता है। इस प्रणाली के तहत, विवाह, तलाक, वित्तीय मामले, वारसत, संपत्ति, अदालती जुर्माना, नागरिकता और अन्य सम्बंधित क्षेत्रों में न्यायपूर्ण और निष्पक्ष निर्णयों का इमारती रूप से व्यवस्थापन किया जाता है।
समान नागरिक संहिता के पक्षान्तरण का प्रस्ताव पहली बार संविधान निर्माण के समय खरेड़ा गया था, जब भारतीय संविधान बना रहे नेताओं ने देश की एकिकृतता, अखंडता और समानता की रक्षा के लिए इसे समर्पित किया था। हालांकि, अपने आदान-प्रदान के कारण, यह विषय विवादों और विपर्यासों का केंद्र बन गया है और इसे लागू करने के लिए धार्मिक समुदायों के बीच विपक्ष का विरोध भी होता है।
भारतीय संविधान के तहत, संघ शासित प्रदेशों में नागरिक संहिता को लागू करने का अधिकार राष्ट्रपति को होता है। इसे लागू करने के प्रयासों में कई बार याचिकाएं दायर की गई हैं, लेकिन अब तक इसे पूरी तरह से कानून बनाने में सफलता नहीं मिली है।
समान नागरिक संहिता के पक्षान्तरण का एक मुख्य उद्देश्य भारतीय समाज में समानता, न्याय और संवेदनशीलता को स्थापित करना है। वर्तमान में भारतीय समाज विभाजनों, जाति-धर्मों और धार्मिक समुदायों के कई विशिष्ट व्यवस्थापन नियमों के कारण विभाजित है। इससे समानांतर मामलों में न्याय और समानता की कमी होती है और असंतोष और संघर्ष उत्पन्न होते हैं। समान नागरिक संहिता के माध्यम से, सभी नागरिकों को समान अधिकार, दायित्व और विवेक के साथ विभाजित नहीं किया जाएगा।
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